सैर-ए-शब-ए-ला-मकाँ और मैं एक हुए रफ़्तगाँ और मैं साँस ख़लाओं ने ली सीना भर फैल गया आसमाँ और मैं सर में सुलगती हवा तिश्ना-तर दम से उलझता धुआँ और मैं इस्म-ए-अबद की तलाश-ए-तवील हुस्न-ए-शुरू-ए-गुमाँ और मैं मेरी फ़रावानियाँ नौ-ब-नौ अब है नशात-ए-ज़ियाँ और मैं दोनों तरफ़ जंगलों का सुकूत शोर बहुत दरमियाँ और मैं ख़ाक ओ ख़ला बे-चराग़ और शब नक़्श ओ नवा बे-निशाँ और मैं फिर मिरे दिल में कोई ताज़ा खोट फिर कोई सख़्त इम्तिहाँ और मैं कब से भटकते हैं बाहम अलग लम्हा-ए-कम-मेहरबाँ और मैं दूर छतों पर बरसता था क़हर चुप रहे क्यूँ तुम यहाँ और मैं ग़ैर मतालिब कहीं और ढूँड सहल बहुत शरह-ए-जाँ और मैं