साज़ के मौजों पे नग़्मों की सवारी मैं थी भैरवी बन के लब-ए-सुब्ह पे जारी मैं थी मैं जो रोती थी मिरा चेहरा निखर जाता था आँसुओं के लिए फूलों की कियारी मैं थी गीत बन जाती कभी और कभी आँसू बनती कभी होंटों से कभी आँखों से जारी मैं थी जान देना तो बड़ी चीज़ है दिल भी न दिया तू तो कहता था तुझे जान से प्यारी मैं थी मैं हरी शाख़ थी गरचे कभी फूली न फली तुम से भी टूट गई गरचे तुम्हारी मैं थी तू ने कुछ क़द्र न की ये बड़ा नुक़सान हुआ तेरे गुलशन के लिए फ़स्ल-ए-बहारी मैं थी मुझ से देखा न गया तेरा परेशाँ होना इश्क़ की बाज़ी समझ-बूझ के हारी मैं थी ये जो 'अंजुम' की है बर्बादी का क़िस्सा मशहूर हाए वो शामत-ए-आमाल की मारी मैं थी