'अंजुम' पे जो गुज़र गई उस का भला हिसाब क्या पूछे कोई सवाल क्या लाएँगे हम जवाब क्या ख़ून-ए-दिल-ओ-जिगर से है हुस्न-ए-ख़याल हुस्न-ए-फ़न इस के बग़ैर शेर क्या मजमूआ क्या किताब क्या तेरा ही नाम ले लिया वक़्त-ए-इशाअत-ए-कलाम इस के अलावा और हम ढूँडते इंतिसाब क्या तेरी ही बे-रुख़ी से तो टूटा है दिल अभी अभी अब इलतिफ़ात-ए-बे-महल हो सके कामयाब क्या हम तो चमन चमन गए दिल न शगुफ़्ता हो सका नसरीन-ओ-नस्तरन है क्या लाला है क्या गुलाब क्या तुम को भी रंज इसी से है हम भी कुछ इस से ख़ुश नहीं और ख़राब इस से भी होगा दिल-ए-ख़राब क्या 'अंजुम' ने आँख खोल के दर्द-ओ-अलम जो देखे हैं औरों ने ख़्वाब में अगर देखे तो ऐसे ख़्वाब क्या