साज़-ए-आलाम पे दिल नग़्मा-सरा होता है ऐ मोहब्बत ये तिरे दौर में क्या होता है फैल जाती है फ़ज़ाओं में उदासी की घटा इश्क़ जब हुस्न से रो रो के जुदा होता है हौसला दीद का हरगिज़ न करें अहल-ए-नज़र जल्वा-ए-हुस्न बहुत होश-रुबा होता है वो हवस है जो गिला करती है रंज-ओ-ग़म का इश्क़ हर हाल में राज़ी-ब-रज़ा होता है उन के मुबहम से इशारों का तअस्सुर तौबा दिल में क्या मा'रका-ए-यास-ओ-रजा होता है हम जो कहते हैं उसे वक़्त का शहकार-ए-जमील बात कुछ भी नहीं लेकिन वो ख़फ़ा होता है रविश-ए-ख़ास पे चलता हूँ अदब में 'परवेज़' मेरे हर शेर का अंदाज़ नया होता है