साज़िशों के दौर में मौसम ने यूँ जकड़ा हमें ऐन मुमकिन है मोअर्रिख़ भी लिखे अंधा हमें दोस्ती की ये ज़रूरी शर्त हो जैसे कोई हर क़दम पर दोस्तों ने दे दिया धोका हमें जलते ख़ेमों में हमारी नस्ल रौंदी जाएगी याद रक्खेगी हमारे बाद ये दुनिया हमें फिर सुनाई दे रही है हर तरफ़ घोड़ों की टॉप फिर नवेद-ए-तिश्नगी देने लगे दरिया हमें आदमी हैं हम नहीं हैं पेड़ पर 'साबिर' 'रज़ा' बाँटना होगा कड़कती धूप में साया हमें