सख़्त दुश्वार है आसाँ कोई मुश्किल होना दिल को अब तक मिरे आया ही नहीं दिल होना कब मुहाल उन से मुलाक़ात है ऐ दिल होना शर्त है उस के लिए जज़्बा-ए-कामिल होना वाक़िफ़-ए-कूचा-ए-जानाँ नहीं मिलता कोई हाँ मिरे शौक़ ज़रा रहबर-ए-मंज़िल होना पेच तक़दीर के निकलें भी तो निकलें क्यूँकर याद-ए-गेसू में जो सीखा तो सलासिल होना हश्र बरपा कहीं दुनिया-ए-मोहब्बत में न हो तुम न बे-पर्दा नुमायाँ सर-ए-महफ़िल होना पाएमाली में मज़े बोसा-ए-पा के लेता दिल-ए-ना-फ़हम को आया ही नहीं दिल होना आइना फेंक भी दो बद-नज़री करता है उस का शेवा है मुक़ाबिल के मुक़ाबिल होना एक दुनिया तिरे हमराह है दिल वालों की अब न महफ़िल में कहीं ज़ीनत-ए-महफ़िल होना नूर से अपने बढ़ाते रहो 'कौकब' की ज़िया हो मुबारक तुम्हें रश्क-ए-मह-ए-कामिल होना