सख़्त दुश्वार है पहलू में बचाना दिल का कुछ निगाहों से बरसता है चुराना दिल का हाए दिल और दिल-ए-ज़ार के हम से बरताव और फिर तुम से दिल-ए-ज़ार पे आना दिल का शम्अ से ज़ीनत-ए-पहलू है न परवाने से तुम को मंज़ूर है हर तरह जलाना दिल का नासेहो ज़ुल्फ़ के उलझाव बुरे होते हैं कुछ हँसी-खेल समझते हो छुड़ाना दिल का क़हर ढाए तिरे इज़हार-ए-तमन्ना ने 'ज़हीर' हाल कहता है किसी से कोई दाना दिल का