साक़ी की नवाज़िश ने तो और आग लगा दी दुनिया ये समझती है मिरी प्यास बुझा दी एक बार तुझे अक़्ल ने चाहा था भुलाना सौ बार जुनूँ ने तिरी तस्वीर दिखा दी इस बात को कहते हुए डरते हैं सफ़ीने तूफ़ाँ को ख़ुदी दामन-ए-साहिल ने हवा दी माना कि मैं पामाल हुआ ज़ख़्म भी खाए औरों के लिए राह तो आसान बना दी उतनी तो मय-ए-नाब में गर्मी नहीं होती साक़ी ने कोई चीज़ निगाहों से मिला दी वो चैन से बैठे हैं मिरे दिल को मिटा कर ये भी नहीं एहसास कि क्या चीज़ मिटा दी ऐ बाद-ए-चमन तुझ को न आना था क़फ़स में तू ने तो मिरी क़ैद की मीआ'द बढ़ा दी ले दे के तिरे दामन-ए-उमीद में 'माहिर' एक चीज़ जवानी थी जवानी भी लुटा दी