साक़ी मुझे ख़ुमार सताए है ला शराब मरता हूँ तिश्नगी से ऐ ज़ालिम पिला शराब मुद्दत से आरज़ू है ख़ुदा वो घड़ी करे हम तुम पिएँ जो मिल के कहीं एक जा शराब मशरब में तो दुरुस्त ख़राबातियों के है मज़हब में ज़ाहिदों के नहीं गर रवा शराब साक़ी के तईं बुलाओ उठा दो तबीब को मस्तों के है मरज़ की जहाँ में दवा शराब बे-रू-ए-यार ओ मुतरिब ओ अबरू बहार ओ बाग़ 'हातिम' के तईं कभी न पिलाए ख़ुदा शराब