साक़ी ये पिला उस को जो हो जाम से वाक़िफ़ हम आज तलक मय के नहीं नाम से वाक़िफ़ मस्ती के सिवा दौर में उस चश्म-ए-सियह के काफ़िर हो जो हो गर्दिश-ए-अय्याम से वाक़िफ़ मर कर भी तह-ए-ख़ाक न आसूदा हुए आह ऐ इश्क़ न थे हम तिरे अंजाम से वाक़िफ़ सय्याद की उल्फ़त से फँसे आन के वर्ना थे काहे को हम इस क़फ़स ओ दाम से वाक़िफ़ मिलने का पयाम उस से कहो जा के अज़ीज़ो जो उस के न हो वस्ल के पैग़ाम से वाक़िफ़ औरों से क़सम खाइए और हम तो मिरी जाँ हैं ख़ूब तुम्हारी क़सम-अक़साम से वाक़िफ़ कोई नहीं करता जो किया तू ने 'नज़ीर' आह दिल उस को दिया जिस के नहीं नाम से वाक़िफ़