साक़िया तंज़ न कर चश्म-ए-करम रहने दे मेरे साग़र में अगर कम है तो कम रहने दे इश्क़-ए-आवारा को महरूम-ए-करम रहने दे अपने माथे पे शिकन ज़ुल्फ़ में ख़म रहने दे तू ज़माने को मिटाता है मिटा दे लेकिन इश्क़ की राह में कुछ नक़्श-ए-क़दम रहने दे मेरे उलझे हुए हालात ग़नीमत हैं मुझे दिल की बातों में न आ पुर्सिश-ए-ग़म रहने दे आशियाँ फूँक के तकमील-ए-चराग़ाँ कर दे फ़स्ल-ए-गुल आई है गुलशन का भरम रहने दे ज़िंदगी ग़म से सँवरती है निखरती है क़मर ज़िंदगी को यूँही आलूदा-ए-ग़म रहने दे