दूर दूर मुझ से वो इस तरह ख़िरामाँ है हर क़दम है नक़्श-ए-दिल हर निगह रग-ए-जाँ है बन गई है मस्ती में दिल की बात हंगामा क़तरा थी जो साग़र में लब तक आ के तूफ़ाँ है हम तो पा-ए-जाँ पर कर भी आए इक सज्दा सोचती रही दुनिया कुफ़्र है कि ईमाँ है मेरे शिकवा-ए-ग़म से आलम-ए-नदामत में इस लब-ए-तबस्सुम पर शम्अ सी फ़रोज़ाँ है ये नियाज़-ए-ग़म-ख़्वारी ये शिकस्त-ए-दिलदारी बस नवाज़िश-ए-जानाँ दिल बहुत परेशाँ है मुंतज़िर हैं फिर मेरे हादसे ज़माने के फिर मिरा जुनूँ तेरी बज़्म में ग़ज़ल-ख़्वाँ है फ़िक्र क्या उन्हें जब तू साथ है असीरों के ऐ ग़म-ए-असीरी तू ख़ुद शिकस्त-ए-ज़िंदाँ है अपनी अपनी हिम्मत है अपना अपना दिल 'मजरूह' ज़िंदगी भी अर्ज़ां है मौत भी फ़रावाँ है