सलामत है सर तो सिरहाने बहुत हैं मुझे दिल-लगी के ठिकाने बहुत हैं जो तशरीफ़ लाओ तो है कौन माने मगर ख़ू-ए-बद को बहाने बहुत हैं असर कर गई नफ़्स-ए-रहज़न की धमकी कि याँ मर्द कम और ज़नाने बहुत हैं मुअत्तल नहीं बैठते शग़्ल वाले शिकार-अफ़गनों को निशाने बहुत हैं करो दिल के वीराने की कुंज-कावी दबे इस खंडर में ख़ज़ाने बहुत हैं न ऐ शम्अ' रो रो के मर शाम ही से अभी तुझ को आँसू बहाने बहुत हैं हुआ मेरी रूदाद पर हुक्म आख़िर कि मशहूर ऐसे फ़साने बहुत हैं नहीं रेल या तार बर्क़ी पे मौक़ूफ़ छुपे क़ुदरती कार-ख़ाने बहुत हैं बचे क्यूँकि बे-चारा मुर्ग़-ए-गुरसना ब-कसरत हैं दाम और दाने बहुत हैं बस इक आस्ताना है सज्दे के क़ाबिल ज़माना में गो आस्ताने बहुत हैं