सलामत रहें दिल में घर करने वाले इस उजड़े मकाँ में बसर करने वाले गले पर छुरी क्यूँ नहीं फेर देते असीरों को बे-बाल-ओ-पर करने वाले अंधेरे उजाले कहीं तो मिलेंगे वतन से हमें दर-ब-दर करने वाले गरेबाँ में मुँह डाल कर ख़ुद तो देखें बुराई पे मेरी नज़र करने वाले इस आईना-ख़ाने में क्या सर उठाते हक़ीक़त पर अपनी नज़र करने वाले बहार-ए-दो-रोज़ा से दिल क्या बहलता ख़बर कर चुके थे ख़बर करने वाले खड़े हैं दो-राहे पे दैर ओ हरम के तिरी जुस्तुजू में सफ़र करने वाले सर-ए-शाम गुल हो गई शम-ए-बालीं सलामत हैं अब तक सहर करने वाले कुजा सेहन-ए-आलम कुजा कुंज-ए-मरक़द बसर कर रहे हैं बसर करने वाले 'यगाना' वही फ़ातेह-ए-लखनऊ हैं दिल-ए-संग-ओ-आहन में घर करने वाले