सलीब कर्ब की सर पे उठाए फिरता हूँ ग़मों को सीने से अपने लगाए फिरता हूँ वो एक आग है ऐसी जो बुझ नहीं सकती उसे मैं सीने में अपने दबाए फिरता हूँ रह-ए-वफ़ा में कोई हम-नवा नहीं मिलता अना का बोझ अकेले उठाए फिरता हूँ कोई तो आए जो मेरे सवाल हल कर दे मैं आस अहल-ए-करम से लगाए फिरता हूँ फटी क़बा में शुजाअ'त के पादशाही के मैं कैसे शान से तम्ग़े लगाए फिरता हूँ