सत-गुरु लिख या रहीम-ओ-राम लिख एक है उस के हज़ारों नाम लिख आँसूओं से हसरत-ए-नाकाम लिख कोई ख़त ऐसा भी उस के नाम लिख पी गया जो ज़ुल्मतों को घोल कर एक दरिया है उसे गुमनाम लिख चीख़ते लम्हे सुलगते रोज़-ओ-शब इस सदी को फ़ित्ना-ए-कोहराम लिख जब नज़र आएँ तुझे जंगल कटे उन की बर्बादी को क़त्ल-ए-आम लिख उठ शहीदान-ए-वतन की ख़ाक से अपनी पेशानी पे उन के नाम लिख छत उड़ा कर ले गईं जो आँधियाँ मुफ़लिसों की ग़म-ज़दा वो शाम लिख तू दिया है पीर की दरगाह का दे बशारत नूर की इल्हाम लिख आ चिलम भर हम फ़क़ीरों की 'रज़ा' फिर फ़रोग़-ए-बुत-कदा असनाम लिख