सलीक़ा है मुझे तारों से लौ लगाने का कि मैं चराग़ नहीं दाग़ के घराने का वो देख बर्फ़ के फूलों में जागती है सहर यही है क्या तिरा अंदाज़ मुस्कुराने का ख़ुलूस शर्त है पी लूँगा ज़हर भी ऐ दोस्त तो पहले सीख मुझे ढंग आज़माने का लिया जो शाख़-ए-गुल-ए-तर को झुक के बाँहों में वो इक बहाना था तुझ को गले लगाने का चली जो याद तुम्हारी अलख जगाती हुई भटक गया कोई जोगी किसी ठिकाने का उड़ूँ तो चूम लूँ तुझ को कि एक जुगनू हूँ तू ख़्वाब है किसी पर्बत के शामियाने का मिरी लगन का सफ़ीना न डूब जाए कहीं तिरा वजूद भँवर है किसी बहाने का तिरे कलाम तिरे जाम तेरे नाम से 'प्रेम' चमक रहा है सितारा तिरे ज़माने का