हर एक ज़ख़्म की शिद्दत को कम किया जाता नमक से काम न मरहम का गर लिया जाता दिलों का बोझ दिलों से उतारने के लिए ये लाज़मी था गरेबान को सिया जाता ज़माना पाँव की ठोकर में आ भी सकता था सरों को अपने उठा कर अगर जिया जाता कमी न आती तिरे एहतिराम में शाहा किसी ग़रीब का हक़ जो उसे दिया जाता हमारी मौत भी होती बक़ा हमारी 'नबील' कि प्याला ज़हर का हाथों से गर पिया जाता