समझ में उन के आ जाएगी ग़म की दास्ताँ इक दिन मोहब्बत आप हो जाएगी अपनी तर्जुमाँ इक दिन उन्हें खो कर नज़र तस्कीं का सामाँ और ढूँडेगी यक़ीनन फिर दिल-ए-नाकाम होगा कामराँ इक दिन जिन्हें गुल ख़ार समझे हैं वो इक दिन याद आएँगे मता-ए-हुस्न को होगी तलाश-ए-पासबाँ इक दिन यहाँ फिर मुझ सा रिंद-ए-ला-उबाली कौन आएगा कमी महसूस होगी तुझ को ऐ पीर-ए-मुग़ाँ इक दिन उन्हें अपने पराए की अभी पहचान मुश्किल है अभी रहने दो हो जाएगा सब का इम्तिहाँ इक दिन रवाँ है कारवाँ मंज़िल पे अहल-ए-अज़्म पहुँचेंगे जो कम-हिम्मत हैं बन जाएँगे गर्द-ए-कारवाँ इक दिन वो जान-ए-आरज़ू मिल जाएगा जिस की तमन्ना है 'शिफ़ा' ये बज़्म-ए-दिल बन जाएगी रश्क-ए-जिनाँ इक दिन