समझ रहा है तिरी हर ख़ता का हामी मुझे दिखा रहा है ये आईना मेरी ख़ामी मुझे ज़माँ की क़ैद है कोई न है मकाँ की ख़बर कहाँ कहाँ लिए फिरती है तिश्ना-कामी मुझे नहीं कि जुरअत-ए-इज़हार-ए-इश्क़ मुझ में नहीं तबाह कर के रही मेरी नेक-नामी मुझे कोई नहीं मिरा सामे इसी में ख़ुश हूँ मैं कि रास आई बहुत मेरी ख़ुद-कलामी मुझे मज़ा मिला न कभी मंज़िल-आश्नाई का कुछ ऐसा कर गई आवारा तेज़-गामी मुझे हसीन चेहरों को तेवरी के बल बिगाड़ते हैं गिराँ गुज़रती है फ़ितरत की बद-निज़ामी मुझे शराब-ए-तुंद की तल्ख़ी का ज़ाइक़ा जैसे पसंद आई हसीनों की बद-कलामी मुझे नशात-ए-तकिया-ए-ज़नू से सर उठाने तक सितारा सुब्ह का देता रहा सलामी मुझे मैं फ़र्श-ए-राह यूँही तो नहीं हुआ 'आज़र' निढाल कर के रही उस की ख़ुश-ख़िरामी मुझे