साया था मेरा और मिरे शैदाइयों में था इक अंजुमन सा वो मिरी तन्हाइयों में था छनती थी शब को चाँदनी बादल की ओट से पैकर का इस के अक्स सा परछाइयों में था कोयल की कूक भी न जवाब इस का हो सकी लहरा तिरे गले का जो शहनाइयों में था जिस दम मिरी इमारत-ए-दिल शो'ला-पोश थी मैं ने सुना कि वो भी तमाशाइयों में था उट्ठा उसी से ज़ीस्त के एहसास का ख़मीर जो दर्द-ए-दिल के ज़ख़्म की पहनाइयों में था जब शहर में फ़साद हुआ तो अमीर-ए-शहर देखा गया कि आप ही बलवाइयों में था बेहद हसीन था मगर 'आज़र' मुझे तो बस याद इस क़दर रहा कि वो हरजाइयों में था