सामान सद हज़ार हैं तू जाग तो सही सब वक़्फ़-ए-इंतिज़ार हैं तू जाग तो सही ग़ाफ़िल नज़र उठा कि वो आसार-ए-सुब्ह-ए-नौ गर्दूं पे आश्कार हैं तू जाग तो सही औक़ात तेरी क़ुव्वत-ए-बाज़ू पे मुनहसिर लम्हात साज़गार हैं तू जाग तो सही तेरा यक़ीन तेरा अमल तेरे वलवले हस्ती का ए'तिबार हैं तू जाग तो सही ओ महव-ए-ख़्वाब दीदा-ए-बीना के वास्ते ख़ुद जल्वे बे-क़रार हैं तू जाग तो सही बे-बर्ग बे-लिबास दरख़्तों की टहनियाँ पैग़ाम-ए-नौ-बहार हैं तू जाग तो सही 'अख़्तर'-ज़ियाई' नींद के मातों के शहर में कुछ लोग होशियार हैं तू जाग तो सही