सामान-ए-एहतिमाम-ए-चराग़ाँ अभी नहीं महफ़ूज़ बिजलियों से गुलिस्ताँ अभी नहीं मेरा नसीब हैं ग़म-ए-दौराँ की तल्ख़ियाँ मेरे नसीब में ग़म-ए-जानाँ अभी नहीं कहते हैं लब कि छेड़ फ़साने बहार के कहती है आँख ज़िक्र-ए-बहाराँ अभी नहीं अब तक ख़िज़ाँ-रसीदा है सुब्ह-ए-बहार-ए-नौ आसूदा-ए-बहार-ए-गुलिस्ताँ अभी नहीं हर लब पे है नज़ारा-ए-साहिल की गुफ़्तुगू दिल राज़दार-ए-लज़्ज़त-ए-तूफ़ाँ अभी नहीं गो सुब्ह हो चुकी है अंधेरा हनूज़ है कुछ ए'तिबार-ए-सुब्ह-ए-दरख़्शाँ अभी नहीं 'फ़ारूक़' कोई हुस्न-ए-चराग़ाँ मनाए क्या दिल बे-नियाज़-ए-बाद-ए-शहीदाँ अभी नहीं