ख़ौफ़ उस का उसी से डरता हूँ मैं कहाँ आदमी से डरता हूँ तीरगी अब मिरा मुक़द्दर है इस लिए रौशनी से डरता हूँ मौत बर-हक़ है आएगी लेकिन तेरी चारागरी से डरता हूँ जिस का एहसान बोझ बन जाए बस उसी आदमी से डरता हूँ आख़िरत का नहीं ख़याल ज़रा दिल की इस गुम-रही से डरता हूँ जिस से आए अमल में कोताही मैं उसी आगही से डरता हूँ यूँ मिले मुझ को दोस्ती में फ़रेब आज तक दोस्ती से डरता हूँ मैं भी 'मक़्सूद' दौर-ए-हाज़िर में मौत या ज़िंदगी से डरता हूँ