समाअतों को अमीन-ए-नवा-ए-राज़ किया मैं बे-सुख़न था मुझे उस ने नय-नवाज़ किया वो अपने-आप ही नादिम है वर्ना हम ने तो तलाश उस की हर इक बात का जवाज़ किया ये उस निगाह की ईमाइयत-पसंदी है जो सामने की थीं बातें उन्हें भी राज़ किया बदन की आग को कहते हैं लोग झूटी आग मगर उस आग ने दिल को मिरे गुदाज़ किया यहाँ हवा से बचा कर चराग़ रक्खे हैं मकाँ के बंद दरीचों को किस ने बाज़ किया