यूँ देख मिरे दीदा-ए-पुर-आब की गर्दिश दरिया में हो जिस तरह से गिर्दाब की गर्दिश मरता हूँ तिरे वास्ते रोता हूँ ज़ि-बस यार है सैल मिरी चश्म में गिर्दाब की गर्दिश फिर जाती हैं इस तरह से इक पल में वो अँखियाँ जूँ बज़्म में हो जाम-ए-मय-ए-नाब की गर्दिश अज़-बस-कि है आँखों में ख़ुमार उस घड़ी साक़ी मय माँगे है तुझ से जो हर अहबाब की गर्दिश गो ख़ाक हुआ तो भी फिरा बन के बगूला हो कर न गई आशिक़-ए-बेताब की गर्दिश जिंस-ए-ख़िरद-ओ-सब्र बिन इस दिल को हो क्या चैन मुफ़लिस को बुरी होती है अस्बाब की गर्दिश दिल ज़ुल्फ़-ओ-रुख़-ए-यार में 'सौदा' न फिरे क्यूँ ख़ुश आए है उस को शब-ए-महताब की गर्दिश