सामेआ लज़्ज़त-ए-बयान-ज़दा ज़ेहन ओ दिल सेहर-ए-दास्तान-ज़दा फ़िक्र ओ तहक़ीक़ रेहन-ए-मोहर-ओ-सनद तालिब-ए-इल्म इमतिहान-ज़दा ज़ात की फ़िक्र है क़यास-आलूद ज़िंदगी का यक़ीं गुमान-ज़दा रात पहचान दे गई सब को सुब्ह चेहरे मिले निशान-ज़दा ताक में है न कि तआक़ुब में तू शिकारी है पर मचान-ज़दा उन की फ़िक्र-ए-रसा फ़लक-पैमा अपनी सोचें हैं आसमान-ज़दा ख़ुद से रिश्ते नहीं रहे लेकिन लोग अब भी हैं ख़ानदान-ज़दा रात है लोग घर में बैठे हैं दफ़्तर-आलूदा ओ दुकान-ज़दा