सियाह दर्द का ये साएबान गिर जाए हमीं पे टूट के काश आसमान गिर जाए ख़राबा-ए-दिल-ए-तन्हा न देखा जाएगा हमीं मकीं हैं तो हम पर मकान गिर जाए मैं इस लरज़ती सी दीवार-ए-दिल का नौहा हूँ जो कहते कहते कोई दास्तान गिर जाए सँभल सँभल के उठा बार-ए-बेकसी का पहाड़ तिरे जिगर पे न सर की चटान गिर जाए न ऐसे लौंग घुमा नाक में हसीं मुटियार जो हल चलाते हैं कोई किसान गिर जाए दुआ-ए-नीम-शबी और यक़ीन-ए-बे-असरी कि जैसे तीर से पहले कमान गिर जाए 'मुसव्विर' ऐसी हुई तंग ये ज़मीं हम पर बढ़ीं जिधर भी वहीं आसमान गिर जाए