समुंदर था कभी सहरा हुआ है वो क्या था और देखो क्या हुआ है नहीं मालूम उस को हश्र अपना परिंदा जाल पर बैठा हुआ है गुनाह-ए-इश्क़ में कैसी रिहाई तुम्हारे साथ तो धोका हुआ है किसी ने हाल पूछा तब ये जाना हमें तो नाम तक भूला हुआ है निशानी आख़िरी ये है किसी की जो आँसू आँख में ठहरा हुआ है मुनासिब था तुम्हारा रूठ जाना मगर ये क्या कि सब रूठा हुआ है चमक महफ़िल में जिस चेहरे की है वो मुसलसल रात भर रोया हुआ है