सनम ने जब लब-ए-गौहर-फ़शान खोल दिए सदफ़ के मौज-ए-तबस्सुम ने कान खोल दिए तिरी नसीम-ए-तबस्सुम ने ग़ुंचा साँ दिल के जो उक़दे बंद थे आनान-फ़ान खोल दिए सरिश्क-ए-चश्म ने कर शहर-ए-बंद-ए-दिल को ख़राब तमाम इश्क़ के राज़-ए-निहान खोल दिए ये किस की काविश-ए-मिज़्गाँ ने दिल से ता-सर-ए-चश्म हज़ार चश्मा-ए-आब-ए-रवान खोल दिए चमन चमन तिरे आरिज़ के रंग-ए-हसरत ने ब-चश्म-ए-गुल मिज़ा-ए-ख़ूँ-चकान खोल दिए निकालूँ दिल से मैं नाले की किस तरह आवाज़ तिरी निगह ने अजब सुर्मा-दान खोल दिए हवा-ए-ख़ाक-नशीनी ने बे-ग़ुबार 'मुहिब' नज़र में पर्दा-ए-हफ़्त-आसमान खोल दिए