सनम पास है और शब-ए-माह है ये शब है कि अल्लाह ही अल्लाह है तिरे नाज़ क्यूँकर उठाऊँ न मैं मिरी दोस्ती पर तू गुमराह है तुझे होश इतना नहीं बे-ख़बर मिरे हाल से कब तू आगाह है तिरा नाम लेते निकलती है आह मिरी आह के दिल में क्या आह है कहाँ बर्क़-ए-इश्क़ ओ कहाँ कोह-ए-सब्र बगूले के आगे पर-ए-काह है मैं क्यूँकर कहूँ तुझ को फ़ुर्सत नहीं पे ये बात कब तेरे दिल-ख़्वाह है न आने के सौ उज़्र हैं मेरी जाँ और आने को पूछो तो सौ राह है मैं इक रोज़ पूछा जो उस शोख़ से कि क्यूँ कुछ तुझे भी मिरी चाह है तो हँस कर लगा कहने क्या ख़ूब क्यूँ तो मेरा कहाँ का हवा-ख़्वाह है ये सिन कर जो मैं चुप रहा तो कहा अबे दिल का मालिक तो अल्लाह है 'हसन' वस्ल और हिज्र में यार के कभी आह है और कभी वाह है