सनअ'त न होगी ताहम क्या चीज़ हो गए तुम हर शख़्स से तवाज़ो हर बात पर तबस्सुम देखो न मेरे दिल की तस्वीर-ए-पाएमाली अपने से ख़ुद न नफ़रत करने लगो कहीं तुम जिस दिन से तेरे दिल तक पहुँचीं मिरी निगाहें यकसाँ है मुझ को तेरी ख़ामोशी-ओ-तकल्लुम है किस मक़ाम पर अब उल्फ़त ख़ुदा ही जाने हैं वो भी आज चुप-चुप बैठे हैं हम भी गुम-सुम मैं सोच में था छोड़ूँ किस तरह दो-जहाँ को अच्छा हुआ कि मुझ को ऐसे में मिल गए तुम 'मैकश' सा आदमी और उल्फ़त की सख़्त राहें हर गाम पर है लग़्ज़िश हर गाम पर तसादुम