संग और ख़िश्त-ए-मलामत से बचा लो मुझ को अपने दरबार की दीवार बना लो मुझ को पारा-पारा हो अना और सर-ए-मग़रूर फ़ना गेंद की तरह फ़ज़ाओं में उछालो मुझ को लुक़्मा-ए-तर ने मिरे नफ़्स को बर्बाद किया याद करते रहो कंकर के निवालो मुझ को जाने किस क़ब्र का है पैकर-ए-ख़ाली मेरा मैं खिलौना हूँ तो बस तोड़ ही डालो मुझ को दश्त-ए-पुर-ख़ार में हूँ इक शजर-ए-ख़ाम अभी अपनी दहलीज़ का तख़्ता ही बना लो मुझ को इक नज़र एक नज़र एक नज़र एक नज़र सिर्फ़ दुज़्दीदा-नज़र डाल के टालो मुझ को 'काविशम' क्या है समझ में कभी आ जाएगा ग़म-ज़दा गीत समझ कर कभी गा लो मुझ को