संग-ए-दर बन कर भी क्या हसरत मिरे दिल में नहीं तेरे क़दमों में हूँ लेकिन तेरी महफ़िल में नहीं राह-ए-उल्फ़त का निशाँ ये है कि वो है बे-निशाँ जादा कैसा नक़्श-ए-पा तक कोई मंज़िल में नहीं खो चुके रो रो के घर बाहर की सारी काएनात अश्क कैसे आँख में अब ख़ून भी दिल में नहीं बज़्म-आराई से पहले देख ओ नादान देख कौन है महफ़िल में तेरी कौन महफ़िल में नहीं पूछता है आरज़ू 'अहसन' की तू क्या बार बार तेरे मिलने के सिवा कोई हवस दिल में नहीं