संग-ए-दर देख के सर याद आया कोई दीवाना मगर याद आया फिर वो अंदाज़-ए-नज़र याद आया चाक-ए-दिल ता-ब जिगर याद आया ज़ौक़-ए-अरबाब-ए-नज़र याद आया सज्दा बे-मिन्नत-ए-सर याद आया हर तबस्सुम पे ये खाता हूँ फ़रेब कि उन्हें दीदा-ए-तर याद आया फिर तिरा नक़्श-ए-क़दम है दरकार सज्दा-ए-राहगुज़र याद आया जमा करता हूँ ग़ुबार-ए-रह-ए-दोस्त सर-ए-शोरीदा मगर याद आया हाए वो मारका-ए-नावक-ए-नाज़ दिल बचाया तो जिगर याद आया आईना अब नहीं देखा जाता मैं ब-उनवान-ए-दिगर याद आया दर्द को फिर है मिरे दिल की तलाश ख़ाना-बर्बाद को घर याद आया उस को भूले तो हुए हो 'फ़ानी' क्या करोगे वो अगर याद आया