शम-ए-दिल शम-ए-तमन्ना न जला मान भी जा तेज़ आँधी है मुख़ालिफ़ है हवा मान भी जा ऐसी दुनिया में जुनूँ ऐसे ज़माने में वफ़ा इस तरह ख़ुद को तमाशा न बना मान भी जा कब तलक साथ तिरा देंगे ये धुँदले साए देख नादान न बन होश में आ मान भी जा ज़िंदगी में अभी ख़ुशियाँ भी हैं रानाई भी ज़िंदगी से अभी दामन न छुड़ा मान भी जा शहर फिर शहर है याँ जी तो बहल जाता है शहर को छोड़ के सहरा को न जा मान भी जा