साँप जब आस्तीन से निकला वहम कोई यक़ीन से निकला उस ने जब मुझ से अलविदा'अ कहा कोई पुर्ज़ा मशीन से निकला उस से बिछड़ा तो यूँ लगा जैसे इक मुसलमान दीन से निकला रौशनी भर गई ख़लाओं में इक सितारा ज़मीन से निकला सिदरत-उल-मुंतहा पे जा पहुँचा अस्फ़ल-ए-साफ़िलीन से निकला