रंग-ए-सोहबत उड़ा जबीनों से जब मरासिम हुए मशीनों से कौन उठाता है अब पराए ग़म लोग डरते हैं आस्तीनों से दुश्मनी अपनी ख़ानदानी थी दोस्ती थी मगर कमीनों से ख़ातिमुस्सादिक़ीन हैं हम लोग सो निकाले गए ज़मीनों से हम ने आवारगी में सीख लिया बच के रहना है रह-नशीनों से