साँस लेने का कब महल है यहाँ साँस लेना तो इक जदल है यहाँ ये है आशोब-ए-शहर का मौसम सिंफ़-ए-मतरूक अब ग़ज़ल है यहाँ मैं पलक भी झपक नहीं सकती मेस्मिरीज़्म का क्या अमल है यहाँ तुम ने ऊँटों की दौड़ देखी है तिफ़्ल किस का सर-ए-जमल है यहाँ लम्हा लम्हा बदलता जाता है कौन जाने कि क्या अटल है यहाँ 'सादिया' आरज़ू का हासिल क्या कोई हर चीज़ का बदल है यहाँ