हदीस-ए-जाम चले क़िस्सा-ए-सुबू निकले किसी भी तरह सही तेरी गुफ़्तुगू निकले मैं तेशा-ज़न हूँ तिरे वास्ते यही बस है ये आरज़ू ही किसे है कि आरज़ू निकले न जाने क्यों मिरा लहजा बदलने लगता है जो दोस्तों में कभी तेरी गुफ़्तुगू निकले दिलों की बात भी निकली नसीम-ए-आवारा हमारे इश्क़ के क़िस्से भी कू-ब-कू निकले ये जानते हैं कि तू शहर में नहीं है मगर है फिर भी आस किसी मोड़ पर से तू निकले दिल-ए-गुदाज़ का करता हूँ एहतिराम इतना मैं चूम लेता हूँ जिस आँख से लहू निकले ख़ुदा के फ़ज़्ल से मैं कम हुनर न था 'अफ़सर' सितम तो ये है कि अहबाब ऐब-जू निकले