साँस मेरी ये आख़िरी तो नहीं साथ तेरे मिली हुई तो नहीं जब तलक है इसे गुज़ारूँगा ज़िंदगी तेरी दी हुई तो नहीं जो सुहूलत बनी है तेरे लिए वो सुहूलत बनी हुई तो नहीं अपना होना गँवाना पड़ता है सहल इतनी भी सादगी तो नहीं छोड़ आए हो जो भरी दुनिया फिर से तुम को पुकारती तो नहीं ऐ मिरे दिल फ़रेब क्या तुझ को फिर से उम्मीद शाम की तो नहीं दिल में चिंगारियाँ सी जलती हैं ये मोहब्बत भी आख़िरी तो नहीं सारी छुट्टियों में तुझ को याद किया इश्क़ है तुझ से नौकरी तो नहीं 'नज्म' क्यों पागलों से फिरते हो आइने पर नज़र पड़ी तो नहीं