तू मयस्सर नहीं है, सर्दी है By Ghazal << ज़ख़्म खा के मुस्कुराना आ... साँस मेरी ये आख़िरी तो नह... >> तू मयस्सर नहीं है, सर्दी है और दिसम्बर की ग़ुंडा-गर्दी है टूट जाए अगर तो हर अण्डा कुछ सफ़ेदी है और ज़र्दी है एक वर्दी है मास भी गोया एक वर्दी के पीछे वर्दी है 'नज्म' झोली है आँख भी गोया हम ने फैलाई उस ने भर दी है Share on: