सपेदी रंग-ए-जहाँ में नहीं मिलाता हूँ हक़ीक़तों को गुमाँ में नहीं मिलाता हूँ सरिश्क-ए-ग़म रग-ए-जाँ में नहीं मिलाता हूँ मैं ज़हर आब-ए-रवाँ में नहीं मिलाता हूँ जो कह दिया कि तिरा हूँ तो सिर्फ़ तेरा हूँ मैं झूट अपने बयाँ में नहीं मिलाता हूँ तमाम-शहर तिरी हाँ में हाँ मिलाता है अकेला मैं तिरी हाँ में नहीं मिलाता हूँ तुम्हारा ग़म ग़म-ए-दुनिया से दूर रक्खा है कभी मैं सूद ज़ियाँ में नहीं मिलाता हूँ गुज़र गया जो तिरी याद के बग़ैर कभी वो पल मैं उम्र-ए-रवाँ में नहीं मिलाता हूँ सँवारता हूँ उसे रात जाग कर 'अरशद' मैं ख़्वाब ख़्वाब-ए-गिराँ में नहीं मिलाता हूँ