साक़िया लुत्फ़ मय का जब आए जाम पर जाम बे-तलब आए तुम न मिलते अगर तो यूँ लगता हम ज़माने में बे-सबब आए शख़्स इक से थीं रौनक़ें सारी वो जब आया लगा कि सब आए रश्क से चाँद जल उठा कितना बाम पर जब वो एक शब आए ज़िंदगी तू तो बेवफ़ा निकली मौत भी कौन जाने कब आए कब तलक मौत से रहें डरते कल है आना जिसे वो अब आए बात वा'इज़ की मान लें कैसे बिन पिए चैन हम को कब आए लब हों सूखे तो ऐ 'सदा' कैसे हर्फ़-ए-तौबा भी ज़ेर-ए-लब आए