सर झुकाए हुए इक राह पे चलते रहिए By Ghazal << मेरे ख़दशात क्यूँ नहीं सम... हर हुक्मरान आ के ब-सद-नाज... >> सर झुकाए हुए इक राह पे चलते रहिए इक सदा कान में आएगी वो सुनते रहिए मुड़ के देखेंगे तो पत्थर नहीं हो जाएँगे आप मुड़ के भी देखिए और आगे भी चलते रहिए ऐसे सन्नाटे में जब बार हो आवाज़-ए-नफ़स सूरत-ए-दिल ही किसी दिल में धड़कते रहिए Share on: