सर को चाहा भी उठाना तो उठाया न गया कर के सज्दा तिरा फिर होश में आया न गया जल्वा-ए-तूर का हो देखने वाला बे-ख़ुद ये भी इक राज़ था अब तक जो बताया न गया तू ने किस नाज़ से देखा था अज़ल में इन को आज तक होश में दीवानों से आया न गया ता-दम-ए-ज़ीस्त न आया मिरे नामे का जवाब नामा-बर मुझ को बराबर है गया या न गया वो मिटाएँगे भला क्या मिरी हस्ती 'अफ़्क़र' दहर में नक़्श-ए-वफ़ा जिन से मिटाया न गया