सर पे दस्तार रखे हाथ में कासा रक्खे कौन अब जान पे अपनी ये तमाशा रक्खे कोई दरिया न बुझा पाया मिरी तिश्ना-लबी अब कोई लाए मिरे होंटों पे सहरा रक्खे इस को ठुकरा दूँ अगर सर पे बिठा लेगी मुझे मैं जो फिरता हूँ अभी सर पे ये दुनिया रखे एक मुद्दत से नहीं देखा है चेहरा उन का एक मुद्दत से है आँखें मिरी रोज़ा रखे इस से कम पर कभी राज़ी नहीं होते माशूक़ इश्क़ जो दिल में रखे सर का भी सौदा रक्खे बेवफ़ा से भी निभाए कोई कब तक 'दानिश' सब्र भी रक्खे तो आख़िर कोई कितना रक्खे