सारा ईमान इम्कान की राह में बस तुम्हारे शग़फ़ से चला आता है हुर सर-ए-कर्बला जैसे शब्बीर की सम्त दुश्मन की सफ़ से चला आता है मैं तुम्हारा तो महवर नहीं जानता हाँ मगर मैं किसी की निगाहों में हूँ गिरने लगता हूँ तो थामने के लिए हाथ कोई नजफ़ से चला आता है कान हर ऐब पर थाप के मुंतज़िर आँख टक तेरी कमज़ोरियों पर रही दोस्ता तू कहाँ रेंगता रेंगता मेरे कुर्ते के कफ़ से चला आता है देख चिल्ला ज़रूरी है अज़-राह-ए-पाकीज़गी-ए-नफ़्स ता-ब फ़र्दा-ए-हश्र बा'द मुद्दत कोई ज़र्रा जूँ बन के मोती दहान-ए-सदफ़ से चला आता है ख़ामुशी इल्म है इस लिए साहिब-ए-मा'रिफ़त बोलते हैं बहुत सोच कर जैसे धागा उधड़ता हुआ एक तरतीब के साथ ग़फ़ से चला आता है याद मैं 'अल्वी' जिस के लिए तो दुआ बा'द मस्जिद के मंदिर में भी हो चुकी तू मुझे क्या हराएगी मेरी मदद को ख़ुदा हर तरफ़ से चला आता है