सरापा मेहरबानी हो गया क्या फ़रिश्ता आसमानी हो गया क्या बहाया जा रहा है रोज़ इस को हमारा ख़ून पानी हो गया क्या मिरा लाशा उठा के सर पे अपने तिरा पता भी पानी हो गया क्या मिरा भाई लिए फिरता है ख़ंजर असीर-ए-बद-गुमानी हो गया क्या मेहरबाँ हो गई कुछ ज़र की देवी तो फिर वो ख़ानदानी हो गया क्या 'नसीम' अपना भी इक किरदार जो था वो अब क़िस्सा कहानी हो गया क्या