बदलेंगे हालात के तेवर सब्र करो मा'रका होगा हर इक सर पर सब्र करो आज गला अपना है ख़ंजर उन का है इक दिन बदलेगा ये मंज़र सब्र करो दुश्मन मेरे पीछे छुप कर बैठा है बोल उठेगा इक इक पत्थर सब्र करो हक़ तो हक़ है आख़िर ग़ालिब आएगा बातिल का झुक जाएगा सर सब्र करो शाफ़ा-ए-महशर की है ये ता'लीम हमें ग़ुस्से को पी जाओ 'अकबर' सब्र करो